Friday 27 January 2012

आबादी का झूठ-फरेब,published in prabhat varta 24jan,2012


                          
                       आबादी का  झूठ-फरेब    *विजय  शर्मा
भारत  की  आबादी 110 करोड़ से ज्यादा  है,और क्षेत्रफल करीब 33 लाख  वर्ग कि.मी। आबादी घनत्व निकालें तो 324 प्रति वर्ग कि.मी.। इतनी  बड़ी  आबादी का  भरण-पोषण  कैसे हो? यह  असम्भव  है,यह  मत  हर  भारतीय विद्वान बचपन  से जपता-गुनता  है। युनाइटेड किंगडम का क्षेत्रफल 2.5 लाख कि.मी. और  आबादी 6  करोड़। इसका जनसंख्या घनत्व भी भारत के  आस-पास  का  है-245. है  न  ताज्जुब  की  बात! उपर  से  वहाँ  के  कई  इलाके रहवास  के  लायक  भी  नहीं  हैं,प्राकृतिक  कारणों  से। जर्मनी  का क्षेत्रफल 3.5 लाख  वर्ग कि.मी  और  आबादी 8.24  करोड़। इसकी स्थिति इस  आधार  पर  हमारे  राजस्थान  से  खराब  है। जहाँ  की  आबादी 5.5  करोड़  और  जमीन  जर्मनी के लगभग  बराबर। जनसंख्या घनत्व 230 प्रति  वर्ग  कि.मी। फ्रांस  का  क्षेत्रफल 5.43  लाख  वर्ग कि.मी और  आबादी 6.65  करोड़। जापान  की  कुल  भूमि 3.77  लाख  वर्ग कि.मी वह  भी  समुद्र  से  चौतरफा घिरा  हुआ और  आबादी 13  करोड़।प्राकृतिक कठिनाईयों  की  कोई  बराबरी  नहीं,न  तो  जमीन  बढ  सकती  है,उपर  से  भूकम्प  के  झटके इसे  लहू-लुहान किये  रहते  हैं।  जनसंख्या  घनत्व  भारत  से  ज्यादा । है  न  अजीब  बात-–स्ट्रेंज  रिविलेशन । कम्युनिष्ट उत्तर कोरिया 1.20  लाख  वर्ग किमी पर  आबादी 2.3  करोड़,  जबकि दक्षिण  कोरिया कम  जमीन  1.00 लाख वर्ग कि.मी और  आबादी 4.8  करोड़,अपने  प्रतिद्वंदी से  लगभग  दुगना । यही  हाल  कल  तक  जर्मनी के दो  हिस्सों  का  था। एक  ही  जनता  को  विचारधारा  ने  दो  टुकड़ों में  बाँटा। समाजवादी  जर्मनी से  लाखों  लोग हर साल जहन्नुम से  निकलने  के  चक्कर  में  जन्नत  की  चाह  में प्राण  गँवाते थे। कभी  कोई  नहीं  मिला जो  इसके  उलट  भाग  कर  बर्लिन  जाना  चाहता  हो। लगभग  वही  कोरियाई  स्थिति,वही  समीकरण। भारत  में सबसे  जागृत  चार  प्रदेश बिहार ,बंगाल,उत्तर  प्रदेश  और  केरल  का  संयुक्त क्षेत्रफल 4.60 लाख वर्ग  कि.मी और  आबादी 36 करोड़। ज्यादातर  बुद्धिजीवि,राजनीति  के  चमत्कारिक पुरुष  यहीं  हुए।  गरीब  का  दर्द समझने  वाले,आम  आदमी,मजदूर की मान-मरजाद पर  मरने  वाले खैरख्वाह  यहाँ ज्यादा  हुये। यहाँ  की  राजनीति अब  भी  संघर्ष से  चालित  है। जाहिर  है  यही  सबसे  पिछड़े  इलाके  हैं। यह  संयोग भी  हो  सकता  है।  केरल थोड़ा  बेहतर  है तो  क्या इसलिये  कि  वहाँ  हर  पाँच  साल  में  सरकार  बदलती  रही,  इसलिये  वाम-पिछड़ा  या  हक  -मर्जाद  की  लड़ाई इतनी  तीव्र  कभी  न  हो  पायी। उपर  से  खाड़ी  देशों  से  आने  वाला  पैसा  जो  यहाँ  के  हिंदू,मुसलमान,ईसाई लाते हैं,यह  भी  वजह  हो।  वैसे गौर करें,  केरल कोई  औद्योगिक रुप  से  विकसित  राज्य  नहीं  है,इसकी  स्थिति  पश्चिमी उत्तरप्रदेश  से  मिलती  जुलती  है,जबकि विंध्याचल पार के दक्षिण  के  राज्यों  के  समकक्ष इसे  होना  चाहिये  था।
अब  कम  आबादी  वाले  राष्ट्रों  पर  भी  गौर  करें। ब्राजील 85  लाख  वर्ग कि.मी  भारत का ढाई गुणा,आबादी केवल 18  करोड़। चिली की  आबादी सिर्फ 1.60  करोड़,कोलम्बिया सिर्फ  4.3  करोड़।इनका  क्षेत्रफल  पश्चिमी  योरोप  के  देशों यू.के,जर्मनी,फ्रांस,स्पेन से  बहुत ज्यादा ,आबादी  बहुत  कम। जनसंख्या  घनत्व  तो  बहुत  पॉजिटिव।पर  यहाँ की  जनता  की  बदहाली एशियाई मुल्कों  जैसी  है।
अब  अफ्रीका  को  भी  याद  कर  लें। कांगों  का  क्षेत्रफल  भारत  से  20%  कम ,25 लाख वर्ग  कि.मी ,आबादी  केवल 6  करोड़,अपने  एक  मध्यम प्रांत  के  बराबर।इजिप्ट  भारत  का  एक  तिहाई ,आबादी  केवल  8  करोड़। लेकिन  इससे  इनकी  किस्मत  नहीं  बदली।
ईरान को  भारत  की  आधी  जमीन और  आबादी  केवल 7  करोड़। ईराक  उसका  भी  चौथा  हिस्सा  ,आबादी  केवल 2.6  करोड़ ।यहाँ  भी  ऐतिहासिक  करिश्मे और  संयोग से  तेल  निकला ,करीब  50  साल   पहले,और  उसी की  मलाई  खा  रहे  हैं।वो  भी  पहले  विश्व के  दुश्मनों को बेचकर। यहाँ कोई  कुशलता ,कारीगरी,उद्योग,जनतंत्र,नागरिक समाज नहीं  बन  पाया,जो  समृद्धि दिखती  है,वह  तेल  के  संयोग और  करिश्में पर  आधारित  है।जब  तक  चले...।
लीबिया का क्षेत्रफल भारत का  60% ,आबादी  केवल  58  लाख। मेक्सिको 10 करोड़,अर्जेंटीना  का  जनसंख्या सिर्फ 4  करोड़,  घनत्व  सभी  यूरोपीय देशों  से  बहुत-बहुत  अच्छा  है। लेकिन  इससे  क्या  हुआ? चीन  की  जनता ताईवान को  आँखें  फाड़-फाड़  कर  देखती  थी,50  सालों  तक। फिर  चीन  ने  भी  वह  राह  पकड़  ली। कोई  बताये  माओ त्से तुंग  बड़े  नेता  हैं  या  चियांग काई  सेक? दरसल  जनसंख्या कोई  समस्या नहीं  है। यह  तो  सर्वाधिक महत्वपूर्ण रिसोर्स  है-सारी  दुनिया में  यह  मान्य  है।
क्या  बात  है,कौन  सा  विलक्षण  तत्व  है  जो  किसी मुल्क  को  अगड़ा या  पिछड़ा  बनाता  है। मार-काट,दाँताकिलकिल में  फँसाता  है,या सुखी,सम्पन्न, समृद्ध करता चलता  है। यह  सम्पन्नता केवल  पैसे की  नहीं ,बल्कि  ज्ञान, सुनिश्चित  भविष्य,खुशहाली के  हर  पैमाने  पर -–यह  गौर  करने  वाली  बात  है। अगर  सुख-शांति,समृद्धि,गैरत पाना  हमारा  ध्येय है तो  इसे  खोजें,वरना फिर  अंधविश्वास के  पक्ष  में  दर्जनों तर्क है,सैकड़ों दलील-सूचनायें,हजारों विचारधारायें,बेहिसाब गवाह।
कोई  कह  रहा  था  कि गरीबपंथी,समतावादी, वामपंथी विद्वान मैथेमेटिक्स में  जीरो  पाते  हैं,पर  स्टैटिसटिक्स में  फर्स्ट क्लास।
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3 comments:

  1. पता नहीं हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी कब इन बातों को समझेंगे।खुद भी नहीं समझते और दूसरों को भी नहीं समझने देते- अबुझ बनाए रखने की साजिश ज़ारी है।

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