Sunday 11 December 2011

यूरोप की अमीरी: प्रभात वार्ता में प्रकाशित 11.12.11


                     यूरोप की  अमीरी                    *विजय  शर्मा
यूरोप इतना अमीर क्यों  है?
इसलिये कि  वहाँ  औद्योगिक क्रांति सबसे  पहले हुई।  
फिर  यह  बतायें कि  औद्योगिक  क्रांति वहीं  प्रथम  क्यों  हुई। यूरोप  में क्या  खास  है?
वैसे  यह  एक  संयोग भी  है,पर वहाँ इसके  पूर्ववर्ती कारण  भी मौजूद  थे।
औद्योगिक क्रांति के  लिये  जरुरी है कि आबादी का  एक छोटा ,पर महत्वपूर्ण हिस्सा खेती के  अलावा कोई दूसरा  काम  कर  सके। या  किसानों  को भी इतनी  फुरसत  हो कि दैन्नदिन किसानी के  अलावा किसी और  नई बात,खोज पर  लगें,कुछ  ईजाद करने की  सोचें। ऐसा कुछ जिससे इज्जत  ,सामाजिक रुतबे और  आर्थिक  स्थिति में  इजाफा हो। वैश्वीकरण कोई  नया  शब्द नहीं  है,संस्कृतियों में व्यापार और  ज्ञान की  आवाजाही सदियों  पुरानी है। इसके  दूरगामी और चौंकानेवाले परिणाम होते  हैं। यूरोप को यह  फुरसत  का  समय  कैसे  मिला?
यूरोप ने  पहलेपहल एक  बोर्ड हल बना लिया  था जो  अपने  पूर्ववर्ती नुकिले भाले  नुमा हल की  जगह एक  चपटे लोहे के  पटरे का  इस्तेमाल करता था। हालाँकि यह  उन्हें  चीन से  मिला  था,लेकिन इसके इस्तेमाल और  निपुणता का  फल  यूरोप को  मिला। इससे  उत्तरी यूरोप में  खेती सुलभ  हुई।  इसके  पहले मैदानों  की  उपरी कठोर मिट्टी की परत को  काटने –तोड़ने का कोई  औजार  नहीं  था। यह  नया  हल जमीन  की  उपरी  कठोर  पपड़ी को  काट  पाया जिसके  नीचे  नरम  उपजाऊ मिट्टी मिली। दूसरी बात  उन्होनें खेती की  डिजाईन  बदली, दो  की  जगह  तीन  फसलें। फिर घोड़ों  का  खेती में  इस्तेमाल।  इस  तीसरी फसल से पैदावार में  20% तक  की  वृद्धि  आयी। यहाँ  वे  अलफालफा (एक घास नुमा,घोड़ों का  खाद्य) लगाते  थे,जो नाईट्रोजन  की  मात्रा  को  नियंत्रित  कर  जमीन  को  उपजाऊ भी बनाती है। यह  बात और  है  कि  यह  उन्हें  ईरान से  मिली  जानकारी थी। कम उपजाऊ जमीन पर  भी जानवरों के  चारों की  खेती होने लगी। घोड़े की बैलों  से  खुराक  कम  और  गति  ज्यादा।  इससे  यातायात और ढुलाई  सुगम  हुई।  इन्हीं  तगड़े  घोड़ों  ने  सेना को  भी  मजबूती दी। पैदावार  बढने  से  किसानों  को  फायदा  हुआ  और  वे इतनी  फुरसत पा  सके  कि  दूसरे  कामों  में समय  और  उर्जा  लगा  सकें। इससे  आबादी बढने  लगी ,यानि  और मजदूर  यानि  और  पैदावार। इससे  खाद्य  सप्लाई  बढी जिसने  आबादी को  और  बढाया। इसे  वर्चुअस सर्किल कह  सकते  है,विशियस  सर्किल के उलट अर्थ में ।
चूंकि  खेती-किसानी  में  अब  ज्यादा  लोगों की  जरुरत  नहीं  थी  तो  शहरों का  बसना  शुरु  हुआ। शहरों की  संख्या बढी और  पुराने  शहरों के  आकार  भी  बढे। किसानी  से  फुरसत पाये  ये  लोग  व्यापार करने  लगे,नई  चीजें,मार्ग  और  जानकारियों का  द्वार  खुला।  सूदूर  चीन  तक  से  सम्बंध  प्रगाढ  हुये,यहीं  से  अरब  होते  इन्हें  कागज  मिला।  इससे  प्रकाशन  शुरु  हुआ। ज्ञान सस्ता सुलभ  हुआ,अचानक  पढ-लिख सकने  वालों  की  संख्या  में  बेतहाशा वृद्धि  हुई।
इसके  बाद  14वीं  सदी का प्लेग  आया जो कि भारत,मध्यएशिया  से  गया  था।  इसने यूरोप  की  एक  तिहाई  आबादी को  लील  लिया। इससे  खाद्य  सामग्री की  माँग कम हुई,किसानी में  और  कम  लोग  रह  गये। रोमन  कैथोलिक  चर्च  की जकड़बंदी  कम हुई।  इसके  पहले  चर्च  सारी बातें  नियंत्रित  करता  था।  पादरी  पैसे  लेकर पापमुक्ति  करवाते  थे  और  स्वर्ग  का  टिकट  देते  थे। प्लेग  में  पादरी भी  मरे। इसका  कोई निराकरण  या निवारण  चर्च  न दे  पाया,  इससे  उसकी मॉरल  अथारिटी को  चुनौती मिली। चर्च  की चंगुल  से  निकले  लोगो  को  एक  नयी  आजादी का एहसास हुआ जिसने  सोचने-समझने  के  तौर -तरीको  को  बदल  दिया।
चर्च  का  प्रभाव  कम हुआ और  छपाई  मशीन  का  आगमन।  हालाँकि  गुटेनबर्ग  को इसका श्रेय  दिया गया लेकिन सही  यह  है की छपाई मशीन की ईजाद और इसे सुलभ  करने  में  कईयों का अवदान रहा,गुटेनबर्ग  ने  चूंकि  बाईबिल  छापी  थी  जो कि सर्वाधिक  प्रचारित  किताब  हुई इस नाते कईयों  ने  उसे  छपाई का  पितृपुरुष  मान  लिया। चर्च के  समानांतर खगोल,गणित भूगोल  और तकनीक की  किताबें  आयी  जिनमे  ज्यादातर चर्च  की  बातों  का  खंडन होता था।
स्पेन  ने  नई दुनिया  की  खोज  की  ,अमेरिका  नक्शे  पर  आया,पहला उपनिवेश  अमेरीका  ही  बना,  यह  हर तरह  से माकूल  भी था। नयी  जमीन,अपार  धन  और  नयी  भोजन सामग्री।  आलू जिसे  प्रोटीन  और  अन्य  पोषक  तत्वों  की  खान  कह सकते  है,यूरोप  की  थाली में  नमूदार हुआ,लातीन  अमरीका की चीनी की  मिठास।  ऐसे  आहार  को पाकर  यूरोप  की जिंदगी  बदल  गयी,औसत  आयु,देहक्षमता और सोच  भी उसी के  अनुरुप।

ये  परिवर्तन यूरोप  को  हक्का -बक्का  किये  हुये  थे ,ऐसा धन ,खाना  वैभव  उन्होने पहले  कभी  देखा न था। लेकिन वे  परेशान,शंकित  भी  थे  कि  इस  धन,वैभव  का  क्या करें,इससे कैसे  निबटे? क्योंकि रोमन  कैथोलिक  चर्च  धन  को शक की  निगाह से  देखता था।  बाईबल  मे  है  कि  ऊंट  सूई  की नोक  से  निकल  ले  लेकिन  अमीर आदमी ईश्वर की  चौखट  नहीं  चढ  सकता। प्रोटेस्टैंट  सुधार 16वी  सदी मे  शुरु  हुये ,साथ  ही  साथ  जॉन कैल्विन  भी।  उन्होंने  पुराना नजरिया बदल  दिया। पहली  बार  कोई धर्म कह रहा था कि  अमीरी  मे  बुराई  नहीं। ईश्वर  से  वैभव  का  विरोध  कैसा? बल्कि  यह ईश्वर  की  नेमत  है  कि आप  धनी  हुये। आप को  ईश्वर ज्यादा  चाहते  हैं,तभी  तो  आप  अमीर  हुये। उसकी  मर्जी  से  ही  यह  सम्भव  हुआ।जॉन  कैल्विन  ने  बताया  के  आदमी को खूब  मेहनत  करनी  चाहिये,  धन  कमाना  चाहिये  ,सादगी से  रहना चाहिये ताकि इस  धन  को निवेश  किया  जा सके,इसे  अच्छे और मदद के कामों  में  नियोजित  किया  जा सके। अधिक  धन  किसी  भी  प्रकार अधिक  पाप या शैतानी का  चिन्ह  नही  है,उलटे  यह  चिन्ह  इस  बात  का प्रमाण है कि  आप खुदा के  प्यारे  बंदे  हैं,तभी तो  आपको  यह सब  मिला  है(उसकी  कृपा  से)।  कहते  हैं,औद्योगिक क्रांति  के  दो  जनक  है, उपनिवेशवाद और प्रोटैस्टैंट  सुधार। इसने  ही विस्तार-विकास  को  सम्भव  बनाया  बल्कि  अपरिहार्य  भी।

राजशाही किसानी समाजों का  राजनैतिक सिस्टम  है। दुनिया बदल  रही  थी  जहाँ  जमीन  सबसे महत्वपूर्ण  सम्पत्ति  नही  रह गयी  थी।पूंजी  का  प्रादुर्भाव  हुआ ,सुधार  और विद्रोह पनपने लगे,एक  नया  मध्यम  वर्ग  अगली  कतार  मे  आया जो  व्यक्ति स्वातंत्र्य,स्वास्थ्य , सम्पन्नता और  आनंद  को  झिझक और पापबोध  से  नही देखता था  बल्कि  जरुरी  और  काम्य  मानता था। गरीबी की  कामना  करने वालों  और  इसे  गौरवान्वित करने  वालों  को  सुनना  पड़ा  कि  यह  ईच्छा –कामना  वैसी ही  है  जैसे  कोई  बीमार रहने की  मनौती  माने।
इसी  मध्यवर्ग  ने एनलाईटेनमेंट आलोकप्राप्ति  को  अपनाया  और कैथोलिक चर्च  और  राजशाही    से जा भिड़ा। जिसकी  सनद  फ्रांस  क्रांति से  लेकर पहले  विश्व  युद्ध  और  सोवियत  क्रांति  तक  में  दिखी।

यूरोप  का सिक्का केवल  जोर -जबरई और  जालिमपने,  लूट  पर  नहीं चलता। उसने चिकित्सा, गति  और  संचार में  जो  करतब  दिखाया  ,उसके  आगे  सब  नतमस्तक  हैं। ईश्वर को  चुनौती मेडिकल विज्ञान ने  दी  है,मोबाईल  फोन  ने  दी  है, बुलेट  ट्रेन  ने  दी है। यह  केवल  साहित्य  और  सदिच्छा  और भलमनशाही सेक्युलर  फोर्स  के  बूते  का  नही  था। यूरोप  का  राज सॉफ्ट पावर (विज्ञान,संचार,गति) से  चला,केवल  हार्ड पावर(युद्ध,हथियार ,पैसे,लूट) से  नहीं।

सारी  दुनिया  मे  सर्वाधिक शानदार 20  राष्ट्रों  में  16  यूरोप  में  हैं,बाकी  चार  जापान ,कोरिया  इत्यादि  ने भी  उसी  की  राह  पर  चलकर यह मुकाम  हासिल  किया।  यह  चिढने  और  जलने  की  बात  नहीं  है,इससे  सीखने  की  राह  भी  खुलनी चाहिये।
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2 comments:

  1. zordar aalekh. vidwan aakhir vidwan hota hai.

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  2. Jared Diamond ki ek kitaab hai "Guns, Germs and Steel" (http://www.pbs.org/gunsgermssteel/). Jared ki research bhi ye he batati hai ki Europe ko Guns (ammunition, gola barood), germs (bimarion pe kaabu, thande climate ke kaaran) aur steel (ispat) ki khoj ne aage badhaya.

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